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GLOBAL BUSINESS SUMMIT

Prime Minister's Inaugural Address 16 January 2015

Introduction Hindi
Iconomics times global business sumit hindi

मेरे साथी श्री अरुण जेटली जी
श्री विनीत जैन
भारत और विदेश के मेरे दोस्तों,

आज यहां ग्लोबल बिजनेस समिट को संबोधित करते हुए मुझे प्रसन्‍नता हो रही है। यह अर्थशास्त्रियों एवं उद्योग जगत की हस्तियों को साथ लाने का अच्छा मंच है। मैं इस आयोजन के लिए द इकनॉमिक टाइम्स को धन्यवाद देता हूं।

अगले दो दिनों के दौरान, आप विकास एवं महंगाई, विनिर्माण और बुनियादी ढांचे, गंवाए जा चुके अवसरों और असीमित संभावनाओं पर चर्चा करेंगे। आप भारत को अपार संभावनाओं से भरे एक देश के रूप में देखेंगे, जो पूरी दुनिया में अद्वितीय है। मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि आपके सुझावों पर मेरी सरकार पूरा ध्यान देगी।

मित्रों,
संक्रांति 14 जनवरी, को मनायी गयी। यह एक पावन त्‍यौहार है। यह उत्तरायण का प्रारंभ है जिसे एक पुण्यकाल माना जाता है। इसके साथ ही लोहड़ी पर्व भी मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य, उत्तर की यात्रा प्रारंभ करता है। यह शीतकाल से बसंत ऋतु की ओर कदम बढ़ाने का भी सूचक है।

India - A country of new opportunities hindi
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नए ज़माने के भारत ने भी अपनी परिवर्तन यात्रा शुरू कर दी है; यह 3 से 4 वर्ष की सुस्त उपलब्धियों के शीतकाल से नये वसंत की ओर की यात्रा है।

लगातार दो वर्षों तक 5 फीसदी से भी कम की आर्थिक विकास दर और शासन का कोई भी सटीक तौर-तरीका न होने से देश गहरी निराशा में डूब चुका था। दूरसंचार से लेकर कोयले घोटाले की खुलती परतों ने अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया था। हम, भारत को अवसरों की भूमि बनाने के लक्ष्य से भटक गए थे। अवसरों की कमी के कारण अब हम अधिक समय तक पूंजी और श्रम बल के पलायन का जोखिम नहीं उठा सकते।

जो बर्बादी हो चुकी है अब हमें उसमें सुधार लाना होगा। विकास की रफ्तार बहाल करना एक कठिन चुनौती है। इसके लिए कड़ी मेहनत, सतत प्रतिबद्धता और ठोस प्रशासनिक कदम उठाने की आवश्यकता होगी। हालांकि, हम निराशा पर विजय पा सकते हैं और हमें अवश्य ऐसा करना चाहिए। हमने जो भी कदम उठाए हैं उन्हें निश्चित रूप से इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।

मित्रों,
नियति ने मुझे इस महान राष्ट्र की सेवा करने का अवसर प्रदान किया है। महात्मा गांधी ने कहा था कि जब तक हम “हर आंख से आंसू को नहीं पोछ देते” हमें आराम से नहीं बैठना चाहिए। गरीबी हटाना मेरा बुनियादी लक्ष्य है। समावेशी विकास की मेरी सोच इसी पर टिकी है। इस विजन को नए जमाने के भारत की वास्तविकता में तब्दील करने के लिए हमें अपने आर्थिक लक्ष्यों एवं उद्देश्यों के बारे में पूरी तरह से स्पष्ट रहना होगा।

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सरकार को एक ऐसा इको-सिस्टम अवश्य तैयार करना चाहिए:

  • जहां अर्थव्यवस्था, आर्थिक विकास के लिए हो;और
  • आर्थिक विकास, चहुंमुखी प्रगति को बढ़ावा दे;
  • जहां विकास, रोजगार का सृजन करता हो; और
  • रोजगार, हुनर पर केन्द्रित हो;
  • जहां हुनर का सामंजस्‍य उत्पादन से हो; और
  • उत्पादन, गुणवत्ता के मानदंड के अनुरूप हो;
  • जहां गुणवत्ता, वैश्विक मानदंड पर खरी उतरे; और
  • वैश्विक मानदंडों को पूरा करने से समृद्धि आए।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह समृद्धि सभी के कल्याण के लिए हो।
आर्थिक सुशासन और चहुंमुखी विकास के लिए यही मेरी अवधारणा है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम भारत के लोगों की उन्नति के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करें और नए जमाने के इस भारत का निर्माण करें।

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मित्रों,
मैं आपको बताना चाहता हूं कि हम इस नये वसंत में प्रवेश करने के लिए क्या करने जा रहे हैं। मेरी सरकार, विकास को बढ़ावा देने के लिए बड़ी तेजी से नीतियों एवं कानूनों की रूप-रेखा तैयार कर रही है। मैं इसी मामले में सभी का सहयोग चाहता हूं।

पहला, हम बजट में घोषित राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने के प्रति कटिबद्ध हैं। हमने इस दिशा में व्यवस्थित ढंग से कार्य किया है।

आपमें से कई अपनी कम्पनियों में काईजेन का अभ्यास करते हैं। बर्बादी कम करने का अर्थ है फालतू खर्च में कटौती और दुरुपयोग को रोकना। इसके लिए आत्म-अनुशासन की जरूरत होती है।
यही वजह है कि फालतू खर्च में कटौती के उपाय सुझाने के लिए हमारे पास व्यय प्रबंधन आयोग है। इस तरह से, हम रुपये को ज्यादा उत्पादक बनाएंगे, और इसका अधिकतम लाभ उठाएंगे।

दूसरा, पेट्रोलियम क्षेत्र में बड़े सुधार हुए हैं।

डीजल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त कर दिया गया है। इसने खुदरा पेट्रोलियम के क्षेत्र में निजी कम्पनियों के प्रवेश का रास्ता खोल दिया है।

गैस की कीमतों को अंतर्राष्ट्रीय मूल्‍यों से जोड़ दिया गया है। इससे निवेश का नया प्रवाह आएगा। इससे आपूर्ति बढ़ेगी। यह कदम महत्वपूर्ण बिजली क्षेत्र को समस्याओं से मुक्‍त करेगा।

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आज भारत में रसोई गैस की सब्सिडी सीधे बैंक खातों में भेजना, दुनिया में सबसे बड़ा नकद हस्‍तांतरण कार्यक्रम है। आठ करोड़ से भी अधिक परिवार यह सब्सिडी सीधे अपने बैंक खातों में प्राप्‍त कर रहे हैं। देश के एक तिहाई परिवार इससे जुड़ गए हैं। इससे हेराफेरी पूरी तरह समाप्‍त हो जाएगी।

इसे ध्यान में रखते हुए अन्‍य कल्याण योजनाओं में भी सीधे नकद हस्‍तांतरण शुरू करने की हमारी योजना है।

तीसरा, महंगाई को सख्‍त कदमों से काबू में किया गया है।

तेल के गिरते हुए मूल्‍यों से हालांकि मदद मिली है, लेकिन गैर-तेल मुद्रास्फीति भी बेहद निचले स्तर पर है। खाद्य पदार्थों की महंगाई एक साल पहले 15 प्रतिशत से भी अधिक थी जो पिछले महीने गिरकर 3.1 प्रतिशत के स्तर पर आ गई।

इससे भारतीय रिजर्व बैंक को ब्‍याज दरें कम करने और सतत विकास सुनिश्चित करने का अवसर मिला।

चौथा, जीएसटी लागू करने के लिए संविधान में संशोधन के लिए राज्‍यों की सहमति प्राप्‍त करना भी एक बड़ी उपलब्धि है।

जीएसटी का मसला पिछले 10 वर्षों से भी अधिक समय से विचाराधीन है। जीएसटी अकेले ही भारत को निवेश के लिहाज से प्रतिस्‍पर्धी और आकर्षक बना सकता है।

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पांचवां, गरीबों को वित्‍तीय प्रणाली में शामिल किया गया है।

महज चार महीनों की छोटी सी अवधि में प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत 10 करोड़ से भी अधिक नये बैंक खाते खोलने में कामयाबी मिली है। हमारे जैसे विशाल देश के लिए यह बड़ी चुनौती थी लेकिन इच्‍छाशक्ति, दृढ़संकल्प और प्रत्‍येक बैंकर के पूर्ण सहयोग की बदौलत आज हम सभी को बैंक खाते की सुविधा देने वाला देश बनने के काफी करीब पहुंच गए हैं। जल्‍द ही सभी खातों को “आधार” से जोड़ दिया जायेगा। अब पूरे देश में बैंक का उपयोग करने की आदत आम हो जायेगी। अब इससे भविष्‍य में व्‍यापक अवसर पैदा होंगे। लोगों की बचत बढ़ेगी। वे नई वित्‍तीय योजनाओं में निवेश करेंगे। एक सौ बीस करोड़ लोग पेंशन और बीमे की उम्‍मीद कर सकते हैं। जैसे-जैसे देश तरक्‍की करेगा, इन बैंक खातों के जरिए मांग बढ़ेगी और विकास होगा।

हमने सदा सामाजिक एकता, राष्‍ट्रीय एकता आदि के बारे में ही बहस की है। हमने कभी भी वित्‍तीय एकता पर विचार-विमर्श नहीं किया। हर व्‍यक्ति को वित्‍तीय प्रणाली में शामिल करने के बारे में कभी भी विचार-विमर्श नहीं हुआ। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर पूंजीवादी और समाजवादी दोनों ही सहमत हैं। दोस्‍तों, इससे बड़ा सुधार क्‍या हो सकता है?
छठा, ऊर्जा क्षेत्र में सुधार किया गया है।

कोयला ब्‍लॉक अब नीलामी द्वारा पारदर्शी तरीके से आवंटित किए जा रहे हैं।
खनन को सुविधाजनक बनाने के लिए खनन नियमों में बदलाव किया गया है।

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इसी प्रकार के सुधार बिजली क्षेत्र में किए जा रहे हैं। हमने, नेपाल और भूटान में लंबित पड़ी परियोजनाओं को वहां की सरकारों के सहयोग से दुबारा शुरू किया है। नवीकरणीय ऊर्जा सहित सभी संभावित स्रोतों का उपयोग करके सभी को सातों दिन चौबीस घंटे बिजली उपलब्‍ध कराने के लिए कदम उठाए गये हैं।

सातवां, भारत को निवेश की दृष्टि से आकर्षक बनाया जा रहा है।

बीमा और रियल एस्‍टेट में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा बढ़ाई गई है।

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रक्षा एवं रेलवे में एफडीआई और निजी निवेश को प्रोत्‍साहन दिया जा रहा है।

भूमि अधिग्रहण संबंधी मामलों को तुरंत निपटाने और प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन किया गया है। इससे बुनियादी ढांचे और विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा और किसानों को मुआवजा भी सुनिश्चित किया जायेगा।

आठवां, बुनियादी ढांचे को प्रोत्‍साहन दिया जा रहा है।
रेलवे और सड़कों के निर्माण में व्‍यापक निवेश की योजना बनाई गई है। इनकी संभावनाओं का अधिक लाभ उठाने के लिए नये दृष्टिकोणों और माध्‍यमों को अपनाया जा रहा है।

नौवां, विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए शासन में पारदर्शिता एवं दक्षता और संस्‍थागत सुधार आवश्‍यक हैं। व्‍यापार को सुगम बनाने के लिए नियामक ढांचे को सकारात्‍मक बनाने और स्थिर कर प्रणाली को तेजी से अपनाया जा रहा है।

उदाहरण के लिए मैंने अभी हाल ही में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आश्‍वासन दिया है कि वे ऋण और अपने परिचालन के बारे में सरकार की ओर से बिना किसी हस्‍तक्षेप के अपने व्‍यावसायिक निर्णय लेने में पूर्ण रूप से स्‍वतंत्र होंगे।

हमें सुशासन के लिए तकनीक का उपयोग करने की जरूरत है। चाहे वो बॉयोमीट्रिक आधारित उपस्थिति दर्ज करने जैसा साधारण मसला ही क्‍यों न हो, जिसने कार्यालयों में कर्मचारियों की उपस्थिति और कार्य संस्‍कृति में सुधार ला दिया है, या मानचित्र तैयार करने और योजनाएं बनाने में अंतरिक्ष टेक्‍नोलॉजी जैसा प्रतिस्‍पर्धी विषय ही क्‍यों न हो।

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मैं सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कंप्‍यूटरीकृत करने के लिए व्यापक राष्‍ट्रीय कार्यक्रम शुरू करना चाहता हूं। भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से लेकर राशन की दुकानों और उपभोक्‍ताओं तक की पूरी पीडीएस आपूर्ति श्रृंखला को कंप्‍यूटरीकृत किया जायेगा। टेक्नोलॉजी की मदद से कल्‍याणकारी और प्रभावी खाद्य आपूर्ति उपलब्‍ध होगी।

भारत में बदलाव के लिए केवल योजना बनाना ही नहीं, बल्कि प्रमुख संस्थागत सुधार भी जरूरी है। नेशनल इंस्‍टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया-नीति आयोग की स्‍थापना इस दिशा में एक कदम है। यह आयोग, देश को प्रतिस्‍पर्धा की भावना के साथ सहकारी संघीयवाद की राह पर आगे बढ़ायेगा। नीति आयोग, केंद्र और राज्‍यों के बीच विश्‍वास और भागीदारी बढ़ाने का हमारा मंत्र है।

इस सूची का कोई अंत नहीं है। मैं कई दिनों तक इस पर चर्चा कर सकता हूं, लेकिन मैं यह जानता हूं कि हमारे पास इतना समय नहीं है।

हालांकि हम जो कार्य कर रहे हैं उनके बारे में मैंने आपको व्‍यापक जानकारी दी है। हमने अभी तक अनेक कार्य किए हैं। भविष्‍य में और अधिक कार्य करेंगे।

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मित्रों,
सुधारों का कोई अंत नहीं है। सुधारों के पीछे ठोस उद्देश्‍य होना चाहिए। यह उद्देश्‍य लोगों के जीवन में बेहतरी लाने वाला होना चाहिए। इस बारे में भले ही अनेक दृष्टिकोण हो सकते हैं, लेकिन उनका लक्ष्‍य एक ही होना चाहिए।

हो सकता है कि पहली बार में सुधार किसी को नज़र न आये लेकिन छोटे-छोटे कार्य भी सुधार ला सकते हैं। जो कार्य छोटे लगते हैं, वास्‍तव में वे बेहद महत्वपूर्ण और मूलभूत हो सकते हैं।

बड़े और छोटे कार्यों को करने के बारे में कोई विरोधाभास नहीं है।

पहला दृष्टिकोण नई नीतियां, कार्यक्रम, बड़ी परियोजनाएं बनाने और उल्‍लेखनीय परिवर्तन लाने के बारे में है। दूसरा दृष्टिकोण उन छोटी बातों पर ध्‍यान देना है जो जन आंदोलन शुरू करें और इसे व्‍यापक गति प्रदान करें जिससे विकास को नई गति मिले। हमें दोनों ही रास्‍तों पर आगे बढ़ने की जरूरत है।

मैं इसे एक छोटे से उदाहरण से स्‍पष्‍ट करना चाहूंगा। 20,000 मेगावाट बिजली के उत्‍पादन के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। यह बेशक महत्‍वपूर्ण है।

हालांकि, बिजली बचाने के जन आंदोलन चलाकर भी 20,000 मेगावाट बिजली बचाई जा सकती है।

इनके अंतिम परिणाम एक जैसे ही हैं। दूसरी उपलब्धि हासिल करना कहीं ज्‍यादा मुश्किल है, लेकिन पहली उपलब्धि की तरह ही बहुत महत्‍वपूर्ण है। इसी प्रकार एक नई यूनिवर्सिटी खोलने के समान ही एक हजार प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति में सुधार लाना भी महत्‍वपूर्ण है।

हम जो नए एम्‍स स्‍थापित कर रहे हैं उनसे हमारे वायदों के अनुरूप ही सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवा में सुधार होगा। मेरे लिए स्‍वास्‍थ्‍य सेवा का आश्‍वासन कोई स्‍कीम नहीं है। यह सुनिश्चित करती है कि स्‍वास्‍थ्‍य पर खर्च किया जा रहा एक-एक रुपया सही जगह खर्च हो और हर नागरिक को स्‍वास्‍थ्‍य सेवा सुगम एवं सुलभ हो।

इसी तरह जब हम स्‍वच्‍छ भारत की बात करते हैं, तो इसका व्‍यापक असर पड़ेगा। यह महज नारा नहीं है। यह लोगों का नजरिया बदलने के लिए है। यह हमारी जीवन शैली बदलता है। स्‍वच्‍छता आदत बन जाती है। कूड़े-कचरे के प्रबंधन से आर्थिक गतिविधियां बढ़ती हैं। यह लाखों स्‍वच्‍छता उद्यमी बना सकती है। राष्‍ट्र को स्‍वच्‍छता से पहचान मिलती है। यकीनन, स्‍वास्‍थ्‍य पर इसका व्‍यापक असर पड़ता है। आखिरकार स्‍वच्‍छता से ही डायरिया और अन्‍य बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है।

सत्‍याग्रह आजादी का मंत्र था। आजादी के योद्धा सत्‍याग्रही थे। नए जमाने के भारत का मंत्र स्‍वच्‍छताग्रह होना चाहिए। और इसके योद्धा स्‍वच्‍छताग्रही होंगे।

पर्यटन को ही लीजिए। यह ऐसी आर्थिक गतिविधि है जिसका पूरा उपयोग अब तक नहीं किया गया है। इसके लिए स्‍वच्‍छ भारत की जरूरत है। बुनियादी ढांचे और दूरसंचार संपर्क में सुधार की आवश्‍यकता है। शिक्षा और कौशल विकास की जरूरत है। इसलिए यह एक साधारण सा लक्ष्‍य ही कई क्षेत्रों में सुधार ला सकता है।

लोगों को क्‍लीन गंगा कार्यक्रम को समझना चाहिए। यह भी एक आर्थिक गतिविधि ही है। गंगा के मैदानी इलाकों में हमारी 40 प्रतिशत आबादी रहती है। इस क्षेत्र में एक सौ से अधिक कस्‍बे और हजारों गांव हैं। गंगा की सफाई से नए बुनियादी ढांचे का विकास होगा, इससे पर्यटन बढ़ेगा, इससे आधुनिक अर्थव्‍यवस्‍था बनेगी और लाखों लोगों की मदद होगी। इसके अलावा इससे पर्यावरण का भी संरक्षण होगा।

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रेलवे भी ऐसा ही उदाहरण है। देश में हजारों रेलवे स्‍टेशन हैं जहां हर रोज एक या दो रेलगाडि़यां रुकती हैं। इन सुविधाओं को विकसित करने में पैसा खर्च हुआ है लेकिन बाकी समय इनका इस्‍तेमाल ही नहीं किया जाता। आसपास के गांव के लिए ये स्‍टेशन आर्थिक विकास के केंद्र बन सकते हैं। कौशल विकास के लिए इनका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

यह छोटी ही सही, मगर खूबसूरत शुरुआत होगी।

Reimagining Railways
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कृषि में भी हमारा मुख्‍य लक्ष्‍य उत्‍पादकता बढ़ाना है। इसके लिए प्रौद्योगिकी, भूमि को अधिक उपजाऊ बनाने, प्रति हेक्‍टेयर अधिक फसल और नई-नई किस्‍मों को प्रयोगशाला से खेतों तक पहुंचाने की जरूरत होगी। जैसे ही दक्षता बढ़ेगी खेती की लागत घट जाएगी। इससे खेती व्‍यावहारिक बनेगी।

उत्‍पादन के मामले में कृषि से जुड़ी समूची मूल्‍य श्रृंखला को बेहतर भंडारण, परिवहन और खाद्य प्रसंस्‍करण के जरिए सुधारा जाएगा। हम किसानों को वैश्विक मंडियों से जोड़ेंगे। हम भारत का जायका दुनिया तक पहुंचाएंगे।

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Minimum Government Maximum Governance
Minimum Government Maximum Governance

मित्रों,
मैने कई बार कहा है मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस। यह कोई नारा नहीं है। यह भारत के बदलाव का महत्‍वपूर्ण सिद्धांत है।

सरकारी तंत्र की दो समस्‍याएं हैं – वे जटिल भी हैं और शिथिल भी।

जीवन में लोग मोक्ष के लिए चार धाम की यात्रा करते हैं। सरकार में एक फाइल 36 धाम जाती है और उसे फिर भी मोक्ष नहीं मिलता।

हमें इसे बदलने की जरूरत है। हमारे सिस्‍टम को पैना, कारगर, तेज तथा लचीला होना चाहिए। इसके लिए प्रक्रियाओं को सरल बनाने और उनमें नागरिकों का भरोसा बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए नीति निर्देशित राष्‍ट्र की जरूरत है।

मैक्सिमम गवर्नेंस, मिनिमम गवर्नमेंट क्‍या है? इसका मतलब है कि सरकार का काम व्‍यवसाय करना नहीं है। अर्थव्‍यवस्‍था के ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जहां निजी क्षेत्र बेहतर काम करेगा और बेहतर परिणाम देगा। उदारवाद के 20 वर्षों में हमने कमांड और नियंत्रण का नजरिया नहीं बदला है। हम सोचते हैं कि कंपनियों के कामकाज में सरकार का दखल ठीक है। इसे बदलना चाहिए, लेकिन इसका मतलब अराजकता लाना नहीं है।

Minimum Government Maximum Governance

पहले, सरकार को उन बातों पर ध्‍यान देना चाहिए जिनकी राष्‍ट्र को जरूरत है। दूसरे, सरकार में दक्षता हासिल करने की आवश्‍यकता है ताकि राष्‍ट्र ने जो लक्ष्‍य निर्धारित किया है उसे हासिल किया जा सके।

हमें राज्य की जरूरत क्‍यों पड़ती है? इसके पांच मुख्‍य घटक हैं:

  • पहला, सार्वजनिक सेवाएं जैसे रक्षा, पुलिस और न्‍यायपालिका
  • दूसरा, बाहरी घटक- जो दूसरों को प्रभावित करते हैं जैसे प्रदूषण। इसके लिए हमें नियामक व्‍यवस्‍था की जरूरत है।
  • तीसरा, बाजार की शक्ति- जहां एकाधिकार के लिए नियंत्रण की जरूरत होती है।
  • चौथा, सूचना में अंतर जहां किसी को यह सुनिश्चित करने की जरूरत होती है कि औ‍षधियां असली हैं इत्‍यादि।
  • पांचवां, हमें यह सुनिश्चित करना है कि कल्‍याण और सब्सिडी व्‍यवस्‍था से समाज का निचला तबका भी वंचित न रहे। इसमें खासतौर से शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल शामिल है।

ये ऐसे पाँच क्षेत्र हैं जहां हमें सरकार की जरूरत होती है। इन पांच क्षेत्रों में हमें सक्षम, प्रभावी और ईमानदार सरकार की जरूरत होती है। सरकार में हमें निरंतर ये सवाल पूछने चाहिए- मैं कितना पैसा खर्च कर रहा हूं और बदले में उससे क्‍या प्राप्‍त कर रहा हूं ? इसके लिए सरकारी एजेंसियों को दक्ष बनाने के लिए सुधार लाना होगा। इसलिए हमें कुछ कानूनों को फिर से बनाने की जरूरत होगी। कानून सरकार का डीएनए है। उन्‍हें समय-समय पर नया रूप देते रहना चाहिए।

Efforts to Achieve Big Dreams

भारत आज दो ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था है। क्‍या हम भारत को बीस ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था बनाने का सपना नहीं देख सकते?

क्‍या हमें यह सपना साकार करने के लिए माहौल नहीं बनाना चाहिए ? हम इसके लिए जमीन तैयार कर रहे हैं। यह कठिन कार्य है। अर्थव्‍यवस्‍था को तेज विकास के रास्‍ते पर लाने के लिए तुरंत और आसान सुधार काफी नहीं होंगे। यह हमारी चुनौती है और यही हासिल करना हमारा उद्देश्‍य है।

डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया इसी दिशा में किए जा रहे प्रयास हैं।

डिजिटल इंडिया सरकारी पद्धतियों में सुधार लाएगा, बर्बादी को दूर करेगा, नागरिकों तक पहुंच बढ़ाएगा और उन्‍हें सशक्‍त बनाएगा। इससे आर्थिक विकास को नई गति मिलेगी जो ज्ञान आधारित होगी। हर गांव में ब्रॉडबैंड के साथ व्‍यापक ऑनलाइन सेवाओं से भारत को इस हद तक बदला जा सकेगा जिसकी हम कल्‍पना भी नहीं कर सकते।

स्किल इंडिया भारत की युवा आबादी की क्षमताओं से लाभ उठाएगा जिसकी आजकल हर कोई चर्चा कर रहा है।

Efforts to Achieve Big Dreams
Sabka Sath Sabka Vikas
Sabka Sath Sabka Vikas

शासन में सुधार लगातार चलती रहने वाली प्रक्रिया है। जहां अधिनियम, नियम और प्रक्रियाएं जरूरतों के अनुकूल नहीं है हम उनमें बदलाव कर रहे हैं। हम कई तरह की मंजूरियों को कम कर रहे है क्‍योंकि वे निवेश की राह रोकती है। हमारी जटिल कर व्‍यवस्‍था सुधार की बाट जोह रही है जिसमें सुधार की प्रक्रिया हमने शुरू कर दी है। मैं स्‍पीड में विश्‍वास करता हूं। मैं तेजी से बदलाव को बढ़ावा दूंगा। आने वाले समय में आप इसकी सराहना करेंगे।

इसके साथ ही हमें गरीबों, वंचितों और पीछे छूट गए समाज के तबकों पर ध्‍यान देने की जरूरत है।

मुझे विश्‍वास है कि उनके लिए सब्सिडी की आवश्‍यकता है। हमें जरूरत है सब्सिडी देने के लक्ष्‍य पर आधारित व्‍यवस्‍था की। हमें सब्सिडी में हेरा-फेरी को रोकने की जरूरत है सब्सिडी को नहीं।

मैं पहले भी कह चुका हूं कि सब्सिडी में बर्बादी दूर की जानी चाहिए। लक्षित समूह स्‍पष्‍ट रूप से परिभाषित होने चाहिए और सब्सिडी उन तक अच्‍छी तरह पहुंचनी चाहिए। सब्सिडी का अंतिम लक्ष्‍य गरीबों को सशक्‍त बनाना और गरीबी के दुष्‍चक्र को तोड़ना एवं गरीबी से जंग में उन्‍हें भागीदार बनाना हैं।

इस बारे में मैं यह भी कहना चाहता हूं कि विकास का परिणाम, रोजगार होना चाहिए। सुधार, आर्थिक वृद्धि, प्रगति – यह सब खोखली बातें हैं यदि इनसे रोजगार पैदा न हों।

हमें न सिर्फ अधिक उत्‍पादन की, बल्कि जनता के लिए और जनता द्वारा उत्‍पादन की जरूरत है।

Development as a People's Movement

आर्थिक विकास खुद-ब-खुद देश को आगे नहीं ले जा सकता।

विकास के बहुत से आयाम है एक तरफ हमें अधिक आय की जरूरत है। तो दूसरी तरफ हमें समावेशी समाज की भी आवश्‍यकता है जो आधुनिक अर्थव्‍यवस्‍था के दबाव और तनाव को सं‍तुलित रखता है।

इतिहास राष्‍ट्रों के उत्‍थान और पतन का गवाह है। आज भी, कई देश आर्थिक मामले में समृद्ध हो चुके हैं लेकिन सामाजिक रूप से गरीब है। उनकी पारिवारिक प्रणाली, जीवन मूल्‍य , सामाजिक तानाबाना और उनके समाज में मौजूद अन्‍य विशेषताएं छिन्‍न-भिन्‍न हो चुकी है।

हमें उस पथ पर नहीं जाना चाहिए। हमें ऐसे समाज और अर्थव्‍यवस्‍था की जरूरत है जो एक-दूसरे के पूरक हों। राष्‍ट्र को आगे ले जाने का सिर्फ यही एकमात्र रास्‍ता है।

ऐसा लगता है कि विकास सिर्फ सरकार का एजेंडा बन चुका है। इसे स्‍कीम के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए।

विकास हर किसी का एजेंडा होना चाहिए। यह जन आंदोलन होना चाहिए।

Ek Bharat Shreshth Bharat
Ek Bharat Shreshth Bharat

मित्रों, बा‍की दुनिया की तरह, हम भी दो खतरों- आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन के बारे में चिंतित है। हम सब मिलकर इनसे निपटने का रास्‍ता ढूंढ लेंगे।

आज प्रेरणा और आर्थिक वृद्धि के लिए हर कोई एशिया की तरफ देख रहा है और एशिया में भारत महत्‍वपूर्ण है। न सिर्फ अपने आकार बल्कि लोकतंत्र और जीवन मूल्‍यों के लिए। भारत का मुख्‍य जीवन दर्शन सर्व मंगल मांगल्‍यम् और सर्वे भवंतु सुखिन: है। इसमें विश्‍व कल्‍याण, विश्‍व सहयोग और संतुलित जीवन की बात कही गई है।

भारत बाकी दुनिया के लिए आर्थिक वृद्धि और समावेश का आदर्श बन सकता है।

इसके लिए हमें ऐसी श्रम शक्ति और अर्थव्‍यवस्‍था की जरूरत है जो वैश्विक जरूरतें और आकांक्षाए पूरी करती हों।

हमें सामाजिक सूचकों में तेजी से सुधार लाने की जरूरत है। भारत को अब अल्‍पविकसित देशों की श्रेणी में नहीं रहना चाहिए। और हम ऐसा कर सकते है।

स्‍वामी विवेकानंद ने कहा था ”उठो, जागो और जब तक लक्ष्‍य हासिल नहीं हो जाता रुको मत”। नए जमाने के भारत का सपना साकार करने के लिए हम सबको इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।

हम सब मिलकर ऐसा कर सकते हैं! धन्यवाद।

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